Premanand Ji Maharaj: जय श्री कृष्णा राधे राधे दोस्तों आज हम ऐसे महापुरुष के बारे में बातचीत करने वाले हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है, भारतीय हिंदू गुरू महाराज प्रेमानंद जी का वास्तविक नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे जी है। इनका जन्म ब्राह्मण परिवार में सन् 1972 में उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर के छोटे से गाँव सरसौल में हुआ था। उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में अपना घर छोड़कर संन्यास लेने का निर्णय लिया और वाराणसी में गंगा किनारे जाकर भक्ति भावना में जुट गए। महाराज जी हमेशा अपने आपको भाग्यशाली मानते हैं कि उन्होंने ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया और उनके माता-पिता हमेशा से भक्ति भावना से जुड़े रहे इसी कारण ही प्रेमानंद जी महाराज ने अपना जीवन भगवान श्री महाकाल और राधा रानी के चरणों में स्थापित कर दिया।
प्रेमानंद जी महाराज का सन्यासी जीवन कैसे बीता
प्रेमानंद जी महाराज 13 वर्ष की उम्र में अपने पिता शम्भू पांडे और माता श्रीमती रामा देवी को छोड़कर संन्यास ग्रहण कर लिया था, उससे पहले प्रेमानंद जी महाराज पाँचवी कक्षा से ही गीता का पाठ करना शुरू कर दिए थे। फिर जैसे ही उन्होंने घर छोड़ कर संन्यासी बाबा बनने का निर्णय लिया तो महाराज जी को सन्यासी जीवन में कई दिनों तक भूखा रहना पड़ा। प्रेमानंद जी महाराज ने संन्यासी बनने के लिए अपने माता-पिता भाई-बहन और घर का त्याग करके वाराणसी आ गये और यहाँ पर गंगा किनारे अपना जीवन बिताने लगे।
प्रतिदिन गंगा में तीन बार स्नान करते और तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा कि पूजा करते थे जैसे ही परमानंद महाराज को भूख लगती तो 10-15 मिनट तक भोजन प्राप्ति की इच्छा से बैठते हैं इतने समय में किसी ने भोजन करा दिया तो ठीक है अन्यथा वहाँ से उठकर गंगा जल पीकर अपने दिन का गुजारा करते थे। Premanand Ji Maharaj ने बताया कि ऐसे कई-कई दिनों तक वह भूखे रहे कड़ी धूप और कड़कती ठंड में बिना वस्त्रों के पेड़ के नीचे अपना जीवन यापन करते रहे।
प्रेमानंद जी महाराज की चमत्कारी कहानी
प्रेमानंद जी महाराज संन्यासी बनने के बाद एक दिन किसी स्थान पर बैठे थे अचानक से एक अपरिचित संत आए और उन्होंने कहा श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्रीराम शर्मा के द्वारा दिन में श्री चैतन्य लीला और रात्रि में रासलीला मंच का आयोजन चलाया जाता है जिसमें आप आमंत्रित हैं। पहले तो प्रेमानंद जी महाराज ने स्पष्ट मना कर दिया आने के लिए उसके बाद अपरिचित साधु के द्वारा बार-बार निवेदन करने पर Premanand Ji Maharaj आने के लिए सहमत हो गए।
यह आयोजन लगभग एक महीने तक चलता रहा उसके बाद आयोजन को संपूर्ण रूप से समाप्त कर दिया गया था, एक महीने तक लगातार जाने के बाद प्रेमानंद जी महाराज को चैतन्य लीला और रासलीला का आयोजन देखने की इच्छा बढ़ने लगी, फिर कुछ दिन बाद महाराज जी उसी संत के पास गए जिन्होंने प्रेमानंद जी महाराज को आमंत्रित किया था और संत को कहने लगे कि मेरे को भी आप साथ में रखो जिससे मैं रासलीला देख सकू और इसके बदले में आपकी सेवा करता रहूंगा।
संता ने प्रेमानंद जी महाराज को बोला की आप एक काम करिए वृन्दावन आ जाइए वहाँ पर आपको प्रतिदिन रासलीला देखने को मिलेगी संत की यह बात सुनकर Maharaj Premanand Ji वृंदावन आ गए तभ से प्रेमानंद जी महाराज को प्रेरणा मिली इसके बाद महाराज जी राधा रानी और कृष्ण भगवान के चरणों में आ गए और भगवत प्राप्ति में लग गए।
कहानियों के मुताबिक बताया जाता है कि प्रेमानंद जी महाराज को श्री महाकाल जी ने साक्षात दर्शन दिए थे, उसके बाद गंगा किनारे से प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन आ गये।
प्रेमानंद जी महाराज की किडनी खराब कैसे हुई
जय श्री राधा रानी दोस्तों दरअसल प्रेमानंद जी महाराज को ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज नाम की बीमारी थी, यह बीमारी अक्सर किडनी पर असर डालती है 30 से 50 साल की उम्र में उभरना शुरू करती हैं और किडनी को नष्ट करने के लिए यह बीमारी बहुत खतरनाक होती है, शुरुआती में यह किडनी को धीरे-धीरे बढ़ा करने लगती है फिरे किडनी पानी के गाँठें बन जाती है, इसकी वजह से किडनी काम करना बंद कर देती है जिससे किडनी फेल हो जाती है।
इस तरीके से प्रेमानंद जी महाराज की किडनी 2005 काम करना बंद कर देती है और उसके बाद डायलिसिस पर रहने के लिए डॉक्टर सलाह देते हैं, लेकिन बड़े-बड़े डॉक्टरों का यही मानना है कि इस बीमारी के बाद किडनी काम करना बंद कर देती है और वह व्यक्ति 1-2 साल तक ही जीवित रहता है।
लेकिन प्रेमानंद जी महाराज को तो आज 18-19 वर्ष हो गए तो डायलिसिस होती है और देखने में सभी को तंदुरुस्त और अट्रैक्ट नज़र आते हैं यह कृपया राधा रानी की बनी हुई है।
प्रेमानंद जी महाराज की उम्र क्या है?
प्रेमानंद जी महाराज का जन्म ब्राह्मण परिवार के घर सन् 1972 में उत्तर प्रदेश के कानपुर सरसौल गाँव में हुआ था, आज के हिसाब से हम बात करें तो प्रेमानंद जी महाराज की उम्र 55-60 वर्ष के बीच है। बाकी जन्मदिन की तारीख ना तो प्रेमानंद जी महाराज को याद है न उनके घर वालों को क्योंकि आज से इतने साल पहले इन सब बातों का ज़्यादा ध्यान नहीं रखा जाता था।
प्रेमानंद जी महाराज का आश्रम
प्रेमानंद जी महाराज ने काफी समय वृंदावन में बिताने के बाद यह निर्णय लिया कि यहाँ पर एक आश्रम होना चाहिए जिसमें श्रद्धालु आकर भक्ति भावना कर सके और अपने लिए एक आश्रम बन जाए बन जाए तभी प्रेमानंद जी महाराज के शिष्यों ने श्री हित राधा केली कुंज नाम से एक आश्रम का निर्माण कराया।
पता:- वृदांवन परिक्रमा मार्ग, वराह घाट भक्ति वेदांत धर्मशाला के सामने वृन्दावन उत्तर प्रदेश पिन कोड- 281121 यह प्रेमानंद जी महाराज का आश्रम है।
प्रेमानंद जी महाराज का परिवार
प्रेमानंद जी महाराज के पिता का नाम संभु नाथ पाण्डे और उनके माता जी का नाम रमा देवी है, प्रेमानंद जी महाराज के एक बड़े भाई भी है जिन्होंने संस्कृत की पढ़ाई कर रखी है वो हमेशा अपने परिवार को संस्कारित में धर्मग्रंथ पढ़कर सुनाते थे। प्रेमानंद जी महाराज के परिवार का आजीविका का साधन खेती-बाड़ी था, खेतीबाड़ी से ही उनके परिवार का पालन पोषण होता था।
प्रेमानंद जी महाराज के दादाजी भी एक संन्यासी थे अर्थात पूरा परिवार ही सात्विक था और भक्तिमार्ग पर चलता और लोगों को चलना बताता है, इसी वजह से ही प्रेमानंद जी महाराज ने संन्यास जीवन यापन करने का निर्णय लिया था।
यह भी पढ़ें:- नीम करौली बाबा जीवन परिचय